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यो दे॒वो दे॒वत॑मो॒ जाय॑मानो म॒हो वाजे॑भिर्म॒हद्भि॑श्च॒ शुष्मैः॑। दधा॑नो॒ वज्रं॑ बा॒ह्वोरु॒शन्तं॒ द्याममे॑न रेजय॒त्प्र भूम॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo devo devatamo jāyamāno maho vājebhir mahadbhiś ca śuṣmaiḥ | dadhāno vajram bāhvor uśantaṁ dyām amena rejayat pra bhūma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। दे॒वः। दे॒वऽत॑मः। जाय॑मानः। म॒हः। वाजे॑भिः। म॒हत्ऽभिः॑। च॒। शुष्मैः॑। दधा॑नः। वज्र॑म्। बा॒ह्वोः। उशन्त॑म्। द्याम्। अमे॑न। रे॒ज॒य॒त्। प्र। भूम॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:22» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (महद्भिः) बड़े गुणों से विशिष्ट (वाजेभिः) वेगयुक्त सेनाजनों और (शुष्मैः) बलों के साथ (महः) बड़ा (जायमानः) उत्पन्न होता हुआ (देवः) विद्वान् (देवतमः) अत्यन्त विद्वान् राजा (बाह्वोः) भुजाओं के बीच (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (दधानः) धारण करता हुआ (अमेन) बल से सूर्य्य (द्याम्) प्रकाश (च) और (भूम) पृथिवी को जैसे (प्र, रेजयत्) कम्पाता है, वैसे (उशन्तम्) कामना करते हुए शत्रु को कम्पाता है, उस हम लोगों के सुख की कामना करते हुए राजा को हम लोग स्वीकार करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो योग्य दण्ड से सूर्य्य, प्रकाश और भूगोलों को कम्पाते हुए के सदृश प्रजाओं को अधर्म्माचरण से कम्पाता है, वही पूर्ण विद्वान् राजा होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो महद्भिर्वाजेभिश्च शुष्मैस्सह महो जायमानो देवो देवतमो राजा बाह्वोर्वज्रं दधानोऽमेन सूर्य्यो द्यां भूम च यथा प्र रेजयत् तथोशन्तं कामयमानं शत्रुं कम्पयते तमस्माकं सुखं कामयमानं वयं वृणुयाम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (देवः) विद्वान् (देवतमः) विद्वत्तमः (जायमानः) उत्पद्यमानः (महः) महान् (वाजेभिः) वेगवद्भिः सैन्यैः (महद्भिः) महागुणविशिष्टैः (च) (शुष्मैः) बलैस्सह (दधानः) धरन् (वज्रम्) शस्त्राऽस्त्रम् (बाह्वोः) भुजयोः (उशन्तम्) कामयमानम् (द्याम्) प्रकाशम् (अमेन) बलेन (रेजयत्) कम्पयते (प्र) (भूम) भूमिम्। अत्र पृषोदरादिना रूपसिद्धिः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो न्याय्येन दण्डेन सूर्यः प्रकाशं भूगोलांश्च कम्पयन्निव प्रजां अधर्म्माचरणात् कम्पयति स एव पूर्णविद्यो राजवरो ज्ञायते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्यप्रकाश भूगोलाला कंपित करतो, तसे जो न्याय व दंडाने प्रजेला अधर्माचरणापासून रोखून कंपित (भयभीत) करतो, तोच पूर्ण विद्वान राजा असतो. ॥ ३ ॥